सिवान बंद: उम्मीद से परे ‘चंपारण मीट’ की खुशबू और विरोध के नए रंग!
सिवान : आज के बिहार बंद का आह्वान भले ही राज्यव्यापी रहा हो, लेकिन सिवान में विरोध प्रदर्शनों ने एक अनोखा और स्थानीय रंग ले लिया। जहाँ एक ओर मुख्य चौराहों पर सियासी नारों की गूँज थी, वहीं दूसरी ओर कुछ मोहल्लों में ‘चंपारण मटन’ (हांडी मटन) की खुशबू ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा।
आम तौर पर, सिवान में बंद का मतलब सड़कों पर सन्नाटा और दुकानें बंद होता है। लेकिन इस बार, कुछ स्थानीय युवा कार्यकर्ताओं ने विरोध जताने का एक ऐसा तरीका अपनाया, जो न केवल रचनात्मक था, बल्कि उसने आम लोगों के बीच चर्चा भी छेड़ दी। शहर के पुरानी किला चौक के पास कुछ युवा, जो खुद को एक स्थानीय सामाजिक संगठन का सदस्य बता रहे थे, ‘हांडी मटन’ बनाने में मशगूल दिखे। उनका तर्क था कि सरकार की नीतियों के कारण आम आदमी की जेब खाली हो रही है, ऐसे में विरोध के लिए ऊर्जा कहाँ से आएगी? लिहाज़ा, पहले पेट पूजा, फिर आंदोलन!
अनोखा विरोध, जनता की प्रतिक्रिया
यह दृश्य देखकर राहगीर और इक्का-दुक्का खुले चाय की दुकानों पर बैठे लोग हैरान थे। कुछ लोग हँस रहे थे, तो कुछ गंभीर होकर पूछ रहे थे कि क्या यह बंद का नया तरीका है? एक स्थानीय बुजुर्ग ने कहा, “हमने इतने बंद देखे, लेकिन ऐसा मंजर पहली बार देखा है। विरोध करने का ये नया स्टाइल है या बस भूख मिटाने का बहाना, समझ नहीं आ रहा।”
वहीं, बंद को सफल बनाने के लिए निकले मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने इस पर मिली-जुली प्रतिक्रिया दी। राजद के एक स्थानीय नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमारा लक्ष्य बंद को सफल बनाना था, और हमने वो किया। ये (चंपारण मटन बनाने वाले) शायद अपनी तरह से विरोध कर रहे थे।” वहीं, कुछ विपक्षी कार्यकर्ताओं ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि यह युवाओं का रचनात्मक तरीका है अपनी बात कहने का।
क्यों सिवान में यह अनूठा प्रदर्शन?
सिवान अपनी राजनीतिक चेतना और ज़मीनी आंदोलनों के लिए जाना जाता है। यहाँ के युवा अक्सर नए तरीकों से अपनी आवाज़ उठाते रहे हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह बढ़ती महँगाई और बेरोज़गारी के खिलाफ युवाओं की हताशा का एक प्रकटीकरण था, जिसे उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज़ में व्यक्त करने की कोशिश की। यह शायद सरकार को यह संदेश देने का एक तरीका था कि ‘आप हमें भूखा मार रहे हैं, तो हमें अपनी ऊर्जा के लिए कुछ तो करना होगा!’
बंद के दौरान इक्का-दुक्का वाहनों को छोड़कर सड़कें सूनी रहीं और अधिकांश दुकानें बंद रहीं। लेकिन सिवान के इस अनोखे ‘चंपारण मटन’ विरोध ने निश्चित रूप से राज्यव्यापी बंद की कहानियों में एक नया और स्वादिष्ट अध्याय जोड़ दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या विरोध का यह ‘स्वादपूर्ण’ तरीका भविष्य के आंदोलनों में भी देखने को मिलता है या यह सिवान की एक अकेली और यादगार घटना बनकर रह जाता है।

