बिहार बंद: राजद के रंग में भंग? कांग्रेस के झंडे क्यों छाए रहे?

पटना : आज बिहार बंद था, और सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार, इसका आह्वान मुख्यता विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) द्वारा किया गया था। लेकिन पटना की सड़कों और अन्य शहरों से आई तस्वीरों ने एक नया और दिलचस्प मोड़ दिखाया। जहाँ आम तौर पर लाल और हरे रंग के राजद के झंडे और पोस्टर छाए रहते हैं, वहीं इस बार नीले-सफेद कांग्रेस के झंडे हैरतअंगेज़ तरीके से ज़्यादा संख्या में दिखाई दिए। सवाल उठ रहा है: क्या बिहार की राजनीति में नए समीकरण बन रहे हैं?

आम तौर पर, बिहार में बंद का मतलब राजद का शक्ति प्रदर्शन होता है। लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की छवि इन आंदोलनों से गहरी जुड़ी हुई है। लेकिन आज के बंद में, बड़े-बड़े चौराहों और प्रदर्शन स्थलों पर कांग्रेस के कार्यकर्ता, अपने प्रमुख नेताओं के कट-आउट और पार्टी के निशान वाले झंडे लहराते हुए, राजद के कार्यकर्ताओं के बराबर या उनसे भी ज़्यादा संख्या में नज़र आए। कई जगहों पर तो ऐसा लगा कि यह किसी कांग्रेस का ही बंद हो।

क्या बदल रही है विपक्षी एकता की तस्वीर?

यह घटना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गई है। क्या यह राहुल गांधी की “भारत जोड़ो न्याय यात्रा” के प्रभाव का असर है, जिसने कांग्रेस को ज़मीन पर दोबारा मज़बूत किया है? या फिर राजद के साथ गठबंधन में कांग्रेस अब अपनी पहचान और हिस्सा ज़्यादा ज़ोर से दिखाना चाहती है?

एक तरफ जहाँ राजद के नेता तेजस्वी यादव ने बंद को “सफल” बताया और सरकार पर निशाना साधा, वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बंद के मकसदों को दोहराया। लेकिन परदे के पीछे की कहानी कुछ और ही इशारा कर रही है। एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ने हमारी वेबसाइट से बात करते हुए कहा, “यह कांग्रेस की एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है। वह राज्य में राजद की पहचान को कमज़ोर करके अपनी जगह बनाना चाहती है।”

ग्राउंड रिपोर्ट: कार्यकर्ता क्या कहते हैं?

हमारी टीम ने कई जगहों पर कार्यकर्ताओं से बात की। राजद के एक युवा कार्यकर्ता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हम तो तेजस्वी जी के कहने पर आए हैं, लेकिन यह सही है कि कांग्रेस वाले आज ज़्यादा जोश में दिख रहे हैं।” दूसरी ओर, कांग्रेस के एक बुज़ुर्ग कार्यकर्ता ने गर्व से कहा, “हम भी गठबंधन का हिस्सा हैं। हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि हम सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँ। और इस बार हमने थोड़ा ज़्यादा प्रयास किया है।”

आगे क्या?

इस घटनाक्रम ने बिहार की आने वाली राजनीति के लिए कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या कांग्रेस बिहार में अपनी खोई हुई ज़मीन वापस पा रही है? क्या यह राजद के लिए एक चुनौती है? या फिर यह विपक्षी एकता को और मज़बूत करने की एक नई शुरुआत है, जहाँ हर सहयोगी पार्टी अपनी पहचान को बरकरार रखते हुए आगे बढ़ रही है?

फिलहाल, यह कहना मुश्किल है कि इसका अंतिम परिणाम क्या होगा। लेकिन एक बात तो तय है, बिहार की राजनीति में हवा का रुख बदल रहा है, और इस बंद ने उसकी एक झलक दिखा दी है। नज़र बनाए रखिए, क्योंकि आने वाले दिनों में यह किस्सा और भी दिलचस्प मोड़ ले सकता हैI